गुरुवार, सितंबर 01, 2011

लघु कथा -10


                      जब चिड़िया चुग गई खेत   
                        
विजय प्रताप ने हमेशा अपने बच्चों को लड़ाई - झगडे से दूर रहने , सभी के साथ प्यार से रहने , बड़ों का आदर करने , सभी धर्मों व जातियों का सम्मान करने व झूठ न बोलने जैसे अनेक संस्कार दिए . इन्हीं संस्कारों की बदौलत उसकी बेटी डाक्टर और बेटा सेना में अफसर बनकर अपने पिता व गाँव का नाम रौशन कर रहे हैं . दूसरी तरफ विजय प्रताप के भाई राम प्रताप ने अपने बच्चों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया . अगर कोई बच्चा झगडा करके आता तो उसे डांटने की बजाए उसका पक्ष लेना , स्कूल का काम किया जा नहीं इस तरफ कोई ध्यान नहीं देना ,जेब खर्ची के लिए जितने रूपए मांगे उतने दे देना ही राम प्रताप का काम था .परिणाम स्वरूप बच्चों की आदतें दिन - प्रतिदिन बिगडती चली गई . उसका एक बेटा नशेडी बन गया तो दूसरा चोरी करने के इल्जाम में जेल पहुंच गया .
            आज राम प्रताप और विजय प्रताप दोनों के बेटे घर आ रहे हैं . एक का बेटा जेल से घर आ रहा है तो दूसरे का देश की सेवा करके . विजय प्रताप के लडके का जहाँ सारा गाँव स्वागत कर रहा है वहीं लोग राम प्रताप के बेटे का नाम लेने से भी कतराते हैं . चौपाल में बैठे लोग विजय प्रताप के बेटे के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि यह सब विजय प्रताप के सिखाए अच्छे संस्कारों का परिणाम है .
            चौपाल में बैठा राम प्रताप सोच रहा है कि मेरे बच्चों में खोट नहीं , खोट तो मुझमें है . मैंने ही उनको अच्छे संस्कार नहीं दिए .यदि मैंने उन्हें अच्छे संस्कार दिए होते तो आज ये दिन न देखने पड़ते . राम प्रताप पास पड़ी सहारे वाली घूंटी उठाता है और यह कहते हुए घर को चल पड़ता है कि अब पछताए होत क्या , जब चिड़िया चुग गई खेत .

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शुक्रवार, अगस्त 12, 2011

लघु कथा - 9

                      अहमियत                                

मैं और मेरे चार दोस्त पढने के लिए किराए पर कमरा लेकर रह रहे हैं . जब जी किया नहाए - धोए , पानी का नल खुला पड़ा है तो पड़ा रहे , कभी किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया . पानी बेबजह खराब होता .हम यही सोचते , पानी हमारा थोड़े ही खराब होता है ,उनका होता है . हम ने तो बस कुछ दिन यहाँ रहना है इसलिए मजे से रहेंगे .
           परीक्षा के दिन हम सभी तैयार होने के लिए जल्दी -जल्दी उठे ,लेकिन टंकी में पानी नदारद था .मुंह धोने के लिए एक बूँद भी पानी नहीं था . रफा-हाजत के लिए भी पानी न होने के कारण हम सभी एक - दूसरे का मुंह ताक रहे थे और सोच रहे थे हम पढ़े-लिखे होकर भी पानी को व्यर्थ बहाते रहे और पानी की अहमियत के बारे में कभी नहीं सोचा .
             काश ! और लोगों को भी सदबुद्धि आए और वे पानी की अहमियत समझ सकें 



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मंगलवार, मई 24, 2011

लघु कथा - 8

                         हैसियत वाला भिखारी                    
 प्रभु दयाल मेहता घर में आए मेहमानों के साथ बातें कर रहे था , इतने में भिखारी ने जैसे ही मांगने के लिए आवाज़ लगाई ,वह खड़ा होकर भिखारी को डांटने लगा - " भाग जा ... हट्टा-कट्टा है ,काम धंधा किया कर ."
              प्रभु दयाल बडबडाता हुआ मेहमानों के साथ फिर आ बैठा ." इन लोगों का कोई ईमान-धर्म नहीं , जमीर तो बिलकुल मरा हुआ है  ,मांगने में शर्म महसूस नहीं करते .
' छोडो भी मेहता जी बात आगे करो .'- किशोरी लाल ने चाय का कप मेज पर रखते हुए कहा .
" जी , हमारी हैसियत और लडके की काबिलियत देखते हुए आप कम थोड़े ही करेंगे .कम-से-कम बीस तोले सोना और बीस लाख नगद के अतिरिक्त लडके की पसंद सफारी कार है .इतना ही विशेष है ,बाकि जरूरत का सामान तो आप देंगे ही "- प्रभु दयाल ने बात स्पष्ट की .
          किशोरी लाल सोच में पड़ गया .इस भिखारी और उस भिखारी में कितना अंतर है .वह गरीब भिखारी था और यह हैसियत वाला भिखारी है .

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मंगलवार, मई 10, 2011

लघु कथा - 7

                      कदम                                    
रमेश को रास्ते में एक शराबी गंदी नाली में लेटा हुआ मिला ,जो बेसुध था . उसी समय एक कुत्ता आया . उसने पहले शराबी को सूँघा और फिर उसका मुंह चाटकर चला गया .
" छि-छि कितना गंदा "-रमेश ने रेहड़ी वाले से मुखातिब होते हुए कहा .
रेहड़ी वाला बोला -'भई! आपको लगता होगा गंदा ,वह तो स्वर्ग में घूम रहा है .'
रमेश ने मन-ही-मन कहा -" ऐसे स्वर्ग से तो अच्छा है कि आदमी ..."
इस दृश्य को देखकर रमेश के कदम वापिस घर की तरफ मुड़ गए जो शराब के ठेके की तरफ जा रहे थे .

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रविवार, अप्रैल 24, 2011

लघु कथा - 6

                        कर्त्तव्यनिष्ठ                              
एक शिक्षक दो घंटे अन्य अध्यापकों के साथ गप्पें हांककर कक्षा में नैतिक मूल्य की बातें बताने लगा -' बच्चो ईमानदार बनो , कभी झूठ मत बोलो ,चोरी बुरी आदत है ,स्वावलम्बी बनो और कर्त्तव्यनिष्ठ बनो .'
तभी एक बच्चा खड़ा होकर पूछने लगा -" सर ! कर्त्तव्यनिष्ठ क्या होता है ?"
' कर्तव्यनिष्ठ उसे कहते हैं जो अपने काम के प्रति ईमानदार हो .'- शिक्षक ने उत्साहित होकर कहा .
" सर ! इसका मतलब यह हुआ कि जो आप घण्टा-घण्टा बैठकर बातें करते हैं वह भी आपका काम होगा ."- बच्चे ने शिक्षक के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा .
                   शिक्षक बच्चे के प्रश्न का जवाब सोचकर पशोपेश में पड़ गया .
                 
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शनिवार, अप्रैल 02, 2011

लघुकथा - 5

                         कम कीमत                                

मैंने दुकानदार से चप्पल की कीमत पूछी.उसने कीमत 150 रूपये बताई.मैंने उससे से कहा -" भाई मैं तो 100 रूपये दूंगा , चप्पल देनी है तो बात कर ." दुकानदार ने थोड़ी ना-नुकर की तो मैंने दुकान से पाँव बाहर की तरफ सरकने शुरू कर दिए ,लेकिन मेरा ध्यान दुकानदार की तरफ ही था .ग्राहक हाथ से निकलते देख उसने कीमत और कम की .थोडा और अड़ने पर वह मेरी कही कीमत पर चप्पल देने को तैयार हो गया . मैंने चप्पल खरीद ली ,लेकिन अब मुझे इस बात का पछतावा हो रहा था कि मैंने चप्पल की कीमत और कम क्यों नहीं लगाई ?

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बुधवार, मार्च 23, 2011

लघुकथा - 4

                  भ्रूण हत्या                                         
रीटा अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए प्रतीक्षाकक्ष में बैठी थी . वहीं पर उसकी मुलाकात पूजा से होती है . बातों-बातों में रीटा पूजा को बताती है कि उसने पहले भी तीन बार अल्ट्रासाउंड करवाया है .
             पूजा रीटा से पूछती है कि अब उसके कितने बच्चे हैं . रीटा हाथ से इशारा करते हुए कहती है कि - " कहाँ ! तीनों बार तो लडकियाँ थी , इसलिए अबोर्शन करवाती रही . "
 पूजा - " क्यों ? लडकियाँ थी तो क्या हुआ थी तो आपकी सन्तान , और लडके तथा लडकी में अंतर ही क्या है ?"
रीटा - " अंतर क्यों नहीं , अंतर-ही-अंतर है . लडके माता-पिता के बुढापे का सहारा बनते हैं और लडकियाँ ... लडकियाँ तो माँ-बाप पर बोझ होती हैं . "
पूजा - " अगर तुम्हारी तरह तुम्हारे माँ-बाप भी यही सोचते और तुम्हारी भ्रूण हत्या करवा देते तो तुम भी माँ-बाप पर बोझ न बनी होती और न ही इन मासूम बच्चों का कत्ल हुआ होता ."
          रीटा को पूजा की यह बात सुनकर ऐसा लगा जैसे पूजा ने उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया हो .

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शुक्रवार, जनवरी 21, 2011

Laghu Katha -3

                    अपना दर्द                               
" क्या बात है जी , आप मायूस से दिख रहें हैं ."- मीना ने राजेश को चाय का कप पकड़ाते हुए कहा .
" क्या बताउं मीना ,गाँव से समाचार मिला है कि माता जी का देहांत हो गया है ."
"ओह ! बुरा हुआ . आप चले जाना अकेले . बच्चों की परीक्षा के दिन हैं , पढाई थोड़े ही खराब करनी है ."
" आपने शायद मेरी बात को अच्छी तरह से समझा नहीं , राजू की दादी का नहीं , नानी का देहांत हुआ है ."
      राजेश के इतना कहते ही मीना ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया . अपनी माँ के सदमें से उसका बुरा हाल था .


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शनिवार, जनवरी 08, 2011

Laghu Katha -2

                         अपनापन                        

 हम पाँच लोग किसी परीक्षा की तैयारी के लिए शहर में कमरा लेकर रहने लगे .हम पाँचों ही अलग- अलग गाँवों के थे , लगभग घर से 350 - 400 कि.मी. दूर . चार-पांच दिन बाद ही मेरे पेट में जोर से दर्द होने लगा . दिल करने लगा अभी घर चला जाऊं , लेकिन रात को जाऊं कैसे ? साथियों को बताने से कतरा रहा था कि पता नहीं ये लोग मेरे दर्द को समझेंगे या नहीं ? मुझे घर की याद सताने लगी . घर में होता तो परिवार के लोग मेरे आगे-पीछे होते . मेरे एक साथी ने मेरी स्थिति भांपकर मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछा . मैंने पेट के दर्द के बारे में बताया तो उसने मुझे डांटना शुरू कर दिया .आपने हमें पहले बताया क्यों नही , अगर आपको कुछ हो जाता तो ? बाक़ी सारे भी उठकर मेरे पास आ गए . वे मुझे ऐसे डांट रहे थे जैसे कि बड़े भाई छोटे को डांट रहें हो . उनकी आँखों में दिल की गहराई से उनके दर्द को महसूस किया जा सकता था . वे मुझे जल्दी से उठाकर अस्पताल में ले गए . मैं एक दो दिन बाद ठीक हो गया . मुझे उनमें अपनेपन की झलक दिखाई दी . मुझे ये अहसास हो गया कि अपनापन केवल परिवार के सदस्यों में ही नहीं होता ,बल्कि दूसरों में भी महसूस किया जा सकता है .  


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