चोर
मैं कई दिनों से देख रहा था कि बस परिचालक आधी सवारियों को टिकट देता और आधी सवारियों की टिकट के रूपये वह अपनी जेब में डाल लेता . मैंने मजाक-मजाक में उससे कह ही दिया :-" कन्डक्टर साहब आप तो हराम की खाते हैं ."
वह भी मुझसे हँसते हुए बोला :-" मास्टर जी आपकी बात बिलकुल ठीक है,लेकिन इस समाज में सही कौन है ? कोई हरामखोर है, कोई रिश्वतखोर ,तो कोई कामचोर है . आप भी सही नहीं होंगे .आप भी आधा समय गप्पें मारते होंगे और आधा समय पढ़ाते होंगे और सरकार से पूरी तनख्वाह पाते होंगे."
मैंने अपनी चोरी छुपाते हुए झट से कहा:-
" नहीं,नहीं ऐसा नहीं है ,मैं तो पूरा समय पढाता हूँ ."
उसने कहा :- " मास्टर जी हो सकता है कि आप ईमानदारी से अपना कर्त्तव्य निभाते हों , लेकिन आपके सही होने से पूरा समाज तो सही हो नहीं जाता . हर कोई इस देश को लूट रहा है , अगर मैंने थोड़ी-बहुत चोरी कर ली तो क्या बुरा कर दिया ?
उसकी बात सुनकर मुझे लगा कि उसने हम सबके भीतर छुपे हुए चोर को आइना दिखा दिया हो .
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sarthak rachna , desh ko lootne valon ko aaina dikhaya gya hai.
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा ..
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