गुरुवार, मार्च 08, 2012

गुलामी कि मार

सुबह के समय मै बस स्टैंड पर खड़ा था इतने मे एक बस आई, उसमे से 10 -15 बिहार के मजदूर उतरे  उन्होंने        अपना अपना सामान उठाया और चलने लगे अपनी मंजिल की और ,उनमे से एक ने नीम के पेड से  एक टहनी तोड़ी और दातुन तैयार  करने लगा वहां से रेहड़ी वाला आया उसने उस मजदूर के हाथ से दातुन छीनते हुए कहा"पानी डाला है क्या कभी?" आ जाते है जहाँ मुंह उठा कर,भाग जाओ जहाँ से वह रेहड़ी पर जाकर ठाठ से वही दातुन करने लगा उस मजदूर ने उसे एक बार घूर केर देखा और चलता बना शायद उसकी घूर यही कह रही होगी क्या हुआ हम तुम्हारे प्रदेश में एक गुलाम की तरह है, अपने प्रदेश में होता तो देखता तुझे इस दृश्य को देख मेरे दिमाग से विदेश जाने का नशा उतर गया शायद विदेशों में भारतीय भी इन मजदूरों की भांति गुलामो की तरह रहते होगें इनकी तरह हर किसी की डांट सुनते होगें अपने क्रोध का दमन इन मजूरो की भांति करते होगें आजाद देश के वासी क्यों गुलामी की मार सहने को तैयार  हो जाते हैं अब मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं गुलामी कि मार नहीं सहूंगा    

बुधवार, मार्च 07, 2012

मचाओ हुडदंग

                                                                                                                                                                                                                                                                                 लगाओ रंग

                                 अरे पी कर भंग

                     रे पिया संग

                               मचाओ हुडदंग 

                    हो मस्त मलंग         
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