सुबह के समय मै बस स्टैंड पर खड़ा था इतने मे एक बस आई, उसमे से 10 -15 बिहार के मजदूर उतरे उन्होंने अपना अपना सामान उठाया और चलने लगे अपनी मंजिल की और ,उनमे से एक ने नीम के पेड से एक टहनी तोड़ी और दातुन तैयार करने लगा वहां से रेहड़ी वाला आया उसने उस मजदूर के हाथ से दातुन छीनते हुए कहा"पानी डाला है क्या कभी?" आ जाते है जहाँ मुंह उठा कर,भाग जाओ जहाँ से वह रेहड़ी पर जाकर ठाठ से वही दातुन करने लगा उस मजदूर ने उसे एक बार घूर केर देखा और चलता बना शायद उसकी घूर यही कह रही होगी क्या हुआ हम तुम्हारे प्रदेश में एक गुलाम की तरह है, अपने प्रदेश में होता तो देखता तुझे इस दृश्य को देख मेरे दिमाग से विदेश जाने का नशा उतर गया शायद विदेशों में भारतीय भी इन मजदूरों की भांति गुलामो की तरह रहते होगें इनकी तरह हर किसी की डांट सुनते होगें अपने क्रोध का दमन इन मजूरो की भांति करते होगें आजाद देश के वासी क्यों गुलामी की मार सहने को तैयार हो जाते हैं अब मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं गुलामी कि मार नहीं सहूंगा